आधुनिक तकनीकी दुनिया के सूत्रधार पुरातन ग्रन्थ
हम सभी खुद को आधुनिक कहते हैं और खुद उसकी बखान करते नहीं थकते पर यह प्रश्न है क्या हम वाकई में आधुनिक है और पौराणिक युग पिछड़ा हुआ था तथा हमारी आज की सोच दूरदर्शी है एवं पहले की सोच प्राचीन तथा पिछड़ी हुई थी। इसको जानने के लिए दो तथ्यों पर बातें करते हैं। पहला – अपने पुराणों और काव्यों को भी अगर हम कहानी मान लें जिसमें कल्पना मात्र से कोई भी घटनाओं और व्यक्तियों का ज्ञान है, उस परिपेक्ष्य में उसका आकलन करते हैं फिर इसकी साक्ष्यता पर विचार करेंगे।
काल के गर्भ में बहुत सारी बातें छुपी हुई हैं जिसे हम समझ नहीं पाते हैं। वास्तव में सनातन धर्म का सारा इतिहास तथा परम्पराएं वैज्ञानिक है। हमारे पूर्वज काफी समझदार थे ये उस काल खंड की बात है है जब पढ़े लिखे समझदार लोग कम हुआ करते थे उस समय हमारे ऋषि आज के वैज्ञानिक के समतुल्य समझ सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार –
हवाई जवाज का अविष्कार– पौराणिक कथाओ में हमने पुष्पक विमान की चर्चा पढ़ी और सुनी है। पुष्पक विमान हिन्दू पौराणिक महाकाव्य रामायण में चर्चित वायु-वाहन था। जिसका अधिपति लंका का राजा रावण था, और उल्लेख के अनुसार इसी विमान का उपयोग उसने सीता हरण में भी किया। यह विमान मूलतः धन के देवता कुबेर के पास हुआ करता था, किन्तु रावण ने अपने छोटे भाई कुबेर से बलपूर्वक उसकी नगरी सुवर्णमण्डित लंकापुरी तथा इसे छीन लिया था। कुछ ग्रन्थों के उल्लेख अनुसार पुष्पक विमान का प्रारुप एवं निर्माण विधि अंगिरा ऋषि, जो सप्त ऋषि में भी गिने जाते हैं उनके द्वारा किया गया एवं इसका निर्माण एवं साज-सज्जा देव-शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा की गयी थी। भारत के प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में लगभग दस हजार वर्ष पूर्व विमानों एवं युद्धों में तथा उनके प्रयोग का विस्तृत वर्णन दिया है। इसमें बहुतायत में रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा अन्य सैनिक क्षमताओं वाले विमानों, उनके प्रयोग, विमानों की आपस में भिडंत, अदृश्य होना और पीछा करना, ऐसा उल्लेख मिलता है। यहां प्राचीन विमानों की मुख्यतः दो श्रेणियाँ बताई गई हैं- प्रथम मानव निर्मित विमान, जो आधुनिक विमानों की भांति ही पंखों के सहायता से उडान भरते थे, एवं द्वितीय आश्चर्य जनक विमान, जो मानव द्वारा निर्मित नहीं थे किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक उड़न तश्तरियों के अनुरूप हुआ करता था। इसको आधुनिक जीवन से मिलाएं तो हवाई जहाज वो सारे निर्मित विमान जो उड़ने और परिवहन स्वरुप उपयोग होते थे वही दूसरी ओर उड़न तस्तरी (UFO ) वो सारे आश्चर्यजनक विमान और शक्तियां जिसे पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता एक लोक से दूसरे लोग क्षण भर में चले जाते हैं। ऋषि भारद्वाज द्वारा रचित वैमानिक शास्त्र, संस्कृत पद्य में रचित एक ग्रन्थ है जिसमें विमानों के बारे में जानकारी दी गयी है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित विमान रॉकेट के समान उड़ने वाले प्रगत वायुगतिकीय यान थे। अगर हम इसे कल्पना मात्र भी मान लें तो यह सोचने लायक बात है की पौराणिक कथाओं और काव्यों के रचयिता की सोच कितनी दूरगामी, विकसित और आधुनिक थी तथा यह वास्तव में ऐसा था तो क्या हम सचमुच आज इतने आधुनिक और विकसित हुए हैं, यह विचारणीय है।
प्लास्टिक सर्जरी– महाकाव्यों के अनुसार हमने यह भी पढ़ा है की भगवान गणेश वह महामानव हैं जिनके सर और मुख, गज (हांथी ) के हैं। इसे भी अगर कल्पना मानें तो, आज के परिवेश में प्लास्टिक सर्जरी के अद्भुत स्वरुप के कल्पना को दर्शाता है। पर क्या यह सही में कल्पना मात्र है या जीवन जीने के मूलभूत सिद्धांत जिसे हमारे संस्कृति के पूर्वजों, ऋषि- मुनियों ने गहन शोध के बाद बनाया था, उसका परिचायक हैं।
खगोलीय गणना – भारतीय संस्कृति का कैलेंडर जो की पंचांग है वो पूर्णतः: वैज्ञानिक है जो ब्रह्मांड के भौगोलिक गति पर निर्धारित है। जो दिनांक और दिन पृथ्वी, चंद्र, सूर्य और अन्य ग्रहों के प्रवृति और गति से निर्धारित होता है। जिसे नासा (NASA) जैसी वैज्ञानिक संगठन विभिन्न प्रयासों के बाद सूर्यास्त, सूर्योदय और मौसम की जानकारी और तथ्यों का निरीक्षण किया उसे भारतीय पंचांग में और ज्योतिष विज्ञान की गणना से आज भी निकाला जाता है। चंद्र का पूर्ण आकार पूर्णिमा, अमावस्या आदि भी इससे निहित हैं।
गुरुत्वाकर्षण बल, प्लास्टिक सर्जरी, शिक्षा का केंद्र गुरुकुल, प्लास्टिक सर्जरी के जनक, चिकित्सा विज्ञान की शुरुआत, सुर और संगीत का सृजन, गणना का मूलभूत अंक “जीरो”, सूर्य की पृथ्वी से दूरी यह सब जानकारी ऋषियों द्वारा विभिन्न काव्यों में कालांतर में ही दे दी थी। जो आज विभिन्न अनुसंधान और पेटेंट के माध्यम से दूसरे के नाम से जानी जाती है।

गुरुत्वाकर्षण बल – इसकी चर्चा भारत में 7वीं शताब्दी में ब्रह्मगुप्त (ज्योतिष विज्ञान के माहिर) ने आकर्षण बल जो ग्रहों को एक दूसरे की तरफ खींचता है की चर्चा की थी जो 17वीं सदी में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के रूप में विख्यात हुआ।
शिक्षा का केंद्र गुरुकुल – दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय तथा प्राचीनतम शिक्षा केंद्र में से एक तक्षशिला, प्राचीन भारत में गान्धार देश की राजधानी में स्थित था। जहाँ उस काल खंड में उस समय की व्यावसायिक शिक्षा जैसे घुड़सवारी, तलवार बाजी का प्रावधान था जो आज के समय में विभिन्न शिक्षा केंद्र में औद्योगिक शिक्षा के रूप में परिवर्तित होकर अपनाया जा रहा है। शिक्षा केंद्र “गुरुकुल” का विचार और श्रोत भी भारतीय शिक्षा प्रणाली से प्रभावित होकर हीं कालांतर में स्कूल, महाविद्यालय और विश्वविद्यालाय का निर्माण हुआ।
चिकित्सा विज्ञान का सृजन – विभिन्न कथाओं के आधार पर धन्वंतरी राजा जो की वाराणसी के राजा थे उन्हें आयुर्वेद के भगवान एवं चिकित्सा के देवता तथा आयुर्वेद के प्रेरणा श्रोत के रूप में जाना जाता है। चरक ऋषि ने इसी आयुर्वेद से विभिन्न तत्कालीन लाइलाज बीमारियों का उपचार बनाया था जो आज भी उपयोगी है तथा जिससे प्रभावित होकर अन्य चिकित्सा विज्ञान आवश्यकतानुसार बनाये गए।
प्लास्टिक सर्जरी के जनक – सुश्रुत ऋषि जिनका जन्म 800BC में हुआ था उन्हें प्लास्टिक सर्जरी का जनक माना जाता है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और पौराणिक शिक्षा प्रणाली में पूरे विश्व को एक अद्भुत आविष्कार शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में दिया था। सुश्रुत एक प्राचीन भारतीय चिकित्सक और सर्जन थे उन्हें आज भारत के “सर्जरी के पिता” और “प्लास्टिक सर्जरी के पिता” या “मस्तिष्क शल्य चिकित्सा के पिता” के रूप में भी जाना जाता है। जो शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का आविष्कार और विकास करते थे।
सूर्य की दूरी – गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 1631 ईस्वी में रचित राम चरित मानस में एक दोहा के माध्यम से पृथ्वी से सूर्य की दूरी को दर्शाया था। जो बाद में आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत द्वारा 1905 में दर्शाया गया। दरअसल गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी हनुमान चालीसा के इस 18वीं चौपाई में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का वर्णन है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
यह दोहा हम हनुमान चालीसा में पढ़ते हैं जो कि अवधी भाषा में है और इस दोहे का हिंदी भाषा में अर्थ है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।
दोहे के हर एक शब्द के गणित को वैदिक ज्योतिष के आधार पर ऐसे समझिए-
जुग( युग) = 12000 वर्ष, एक सहस्त्र = 1000, एक जोजन (योजन) = 8 मील, भानु = सूर्य
युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु यानी सूर्य की दूरी
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील (एक मील = 1.6 किमी)
96000000 x 1.6 = 153600000 किमी
इसी के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास ने बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। जो कि आधुनिक सिद्धांत के गणना के अनुसार वास्तव में 150.08 मिलियन किलोमीटर है, जो दोनों बराबर हीं है।
यह सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं होता। डार्विन का विकासवाद सिद्धांत (Darwin’s Theory of Evolution) और पृथ्वी की रचना और प्रारूप में बदलाव, भारत के महाकाव्य में दिए हुए विष्णु के दशावतार की व्याख्या मानव विकास के सिद्धांत से हूबहू मेल खाता है। दशावतार के नामों को संक्षिप्त में कुछ इस प्रकार देखते हैं जो की डार्विन के मानव विकास के 6 चरणों को दर्शाता है तथा मानव जाती में हुए उसके बाद के विकास को भी प्रदर्शित करता है।
मानव विकास के 6 चरण –
मत्स्य- मछली (जलमग्न पृथ्वी), कुर्मा- कछुआ (जल और मिट्टी का मिश्रण) ; वराह (सुवर)- मिटटी तथा कीचड़ में रहने वाला जीव ; नरसिम्हा (मानव और जानवर का सृजन); वामन ( छोटे अविकसित मानव); परशुराम (जंगली प्रवृति का मनुष्य)
मानव जाति में हुए विकास
राम (वर्त्तमान मानव जाती का पहला मर्यादित स्वरुप) ; कृष्ण (समयातीत में विकसित मष्तिस्क और रणनीति का सृजन) एवं कलकी (अत्याधुनिक अस्त्रों से सुजज्जित सर्वनाशक लड़ाई से निवारण करने वाला)
ऐसी कई सारी घटनाएं और व्याख्यायन हैं जो पुरातन संस्कृति और विज्ञान के वृहद् स्वरुप को दर्शाती हैं। आज का वैदिक गणित, विज्ञान, गणना का तरीका, ज्योतिष विज्ञान, कला इन सब क्षेत्रों में काफी विकसित है इसलिए हम सभी को कुंठित महसूस कर किसी भी होड़ में दौड़ने के बावजूद इसे सजाने सवांरने और प्रसारित करने की आवश्यकता है। विवेकानंद जो एक युग प्रवर्तक युवा और दार्शनिक थे , उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सन 1893 शिकागो में विश्व पटल पर भारत की वृहद् संस्कृति और विराट स्वरुप को दिखाया था। उसी जीवन को आज जीने की जरुरत है और अपने शास्त्रों को मानने के साथ साथ, शास्त्रों की बातें मानने की भी आवश्यकता है। आज भी अपने देश के लोग पुरे विश्व के विभिन्न संस्थानों में अपना परचम लह रहा है, लहरा रहे हैं तथा विभिन्न कंपनियों और क्षेत्रों के सर्वोत्तम पोस्ट पर पदासीन हैं। पर इस पर और ध्यान दें तो पुरे विश्व पटल पर राष्ट्र के ध्वज को बहुतायत संख्या में और बुलंदी से लहराने में बल मिलेगा।