त्यौहारों में छिपे कल्याणकारी रंग और वैज्ञानिक रहस्य
भारत विविधता में एकता का देश है। पूरे वर्ष में कई त्यौहार ग्रहीय स्थितियों के गणना के अनुरूप विभिन्न काल खंड में मनाये जाते हैं। अभी होली ने दस्तक दी है जो रंगों का त्यौहार, इनमें से एक महत्वपूर्ण त्यौहार है और यह गहन रहस्यों का संग्रह भी है। यह हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देता है और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
भारतीय सनातन संस्कृति में हम अक्सर ही हर घटनाओं और आयोजन को किसी कहानी से जोड़ते हैं पर उसके पीछे छिपे रहस्य को समझ नहीं पाते हैं। वास्तव में विभिन्न शोध ने यह दर्शाया है कि कहानी के माध्यम से सुनी हुई बातें ज्यादा दिन तक याद रहती हैं क्यूंकि उसका सीधा जुड़ाव मनुष्य के भावनाओं से होता है और वह कालांतर में भी स्मरण में रहता है। एक जर्मन मनोवैज्ञानिक हरमन एबिंगहॉस ने 1880-1885 में विस्मृति वक्र -‘फॉर्गेटिंग कर्व’ की व्याख्या की थी, जिसके अनुसार कोई भी मनुष्य सामान्यतः किसी बात को एक दिन में 40 प्रतिशत तक भूल जाता है और हफ्ते, महीने और साल में स्मृति धूमिल होती जाती है। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला था कि जिन बातों का लगाव भावनाओं से होता है वह ज्यादा दिन तक स्मृति में रहता है और उसे पुनरावृति के तौर पर कुछ अंतराल में सुना जाए तो स्थिर स्मरण शक्ति में बदल जाता है। हम परम्पराओं और कथाओं को देखें तो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि पूर्वजों के अनुभव में ऐसी बातें विभिन्न माध्यम से प्राचीनतम समय में भी उपयोग में लाई जाती थी। वे लोग विभिन्न गहन अध्ययन को भी कालांतर में स्थान्तरित करने के लिए कहानी का रूप दिया करते थे। जिसके अंश में ध्यान और एकाग्रचित रह कर स्मरण शक्ति बढ़ाने का नुस्खा भी साथ था।
इसी अनुरूप होली कथा के पीछे भी वैद्यानिक विश्लेषण और सामाजिक कल्याण के रंग जुड़े हैं। होली की कहानी प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप (हिरण्यकशिपु) से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुरूप हिरण्यकशिपु के छोटे भाई, हिरण्याक्ष को विष्णु के वराह अवतार ने मार दिया था। इससे क्रोधित होकर उसने तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न कर अजेयता का वरदान प्राप्त कर अहंकारी हो गया और खुद को भगवान मानने लगा। कथा के अनुसार जब वह तपस्या कर रहा था उस कालखंड में देवताओं ने उसके घर पर आक्रमण कर दिया, उस समय नारद मुनि ने हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु को पापहीन बता कर उनकी रक्षा स्वयं की और उन्हें अपने पास शरण दिया। उसी समय उसे एक पुत्र ‘प्रह्लाद’ का जन्म हुआ जो नारद मुनि के हरि भक्त होने के चलते वह भी हरी भक्त बना। वहीँ दूसरी ओर हिरणकशिपु के भाई की भगवान हरि द्वारा हत्या किये जाने की वजह से वह उन्हें शत्रु मानता था और दुराचारी होने के चलते उसके प्रदेश में पूजा पाठ वर्जित था। प्रह्लाद, जन्मोपरांत ऋषि के दिव्य निर्देशों के चलते शुरू से भक्ति में लीन रहता था। इसी कारण हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन प्रह्लाद हर बार बच गया। उसी क्रम में प्रह्लाद की हत्या के उद्देश्य से जब उसने अपनी बहन होलिका जिसे अग्नि में न जल पाने का दिव्य वस्त्र और वरदान मिला था, उसके उपयोग से जलाने के लिए साजिश रची और होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी। दैवीय अनुग्रह से होलिका स्वयं तो जल गयी तथा प्रह्लाद उस दिव्य शक्ति द्वारा बचा लिया गया। इसी कारण हम प्रति वर्ष होलिका दहन करते हैं जो पाप के नाश का परिचायक है और प्रह्लाद के जीवित बचने अर्थात सद्कर्मों की जीत को होली, रंगो के त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
अब इसके वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप में इस कहानी का विश्लेषण करते हैं। विभिन्न मान्यताओं और कथाओं के अनुरूप भगवान, एक अदृश्य संचालन शक्ति जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन करने हेतु कण कण में बसा है। हम विज्ञान में भी मानते हैं कि हर पदार्थ या वस्तु किसी माध्यम से आपस में जुड़े हैं और एक कोई ऐसी कड़ी है जो सब जगह व्याप्त है तथा इस ब्रह्माण्ड के संचालन में अहम् भूमिका निभाती है।पर विज्ञान आज के कालखंड में भी इस बात की व्याख्यान करने में असमर्थ हैं कि किसी पदार्थ की सबसे सूक्ष्म अंश ‘इलेक्ट्रॉन’ कैसे गतिशील है। इसी व्याख्यान को प्रस्तुत करने हेतु अध्यात्म बताता है कि हर कण और व्यक्ति में उस अदृश्य शक्ति का वास है। जिस प्रकार समुद्र में जो गुण, क्षमता या विशेषता होती है, वह उसके एक बूंद में भी अनुभव किया जा सकता है। उसी प्रकार जीव या निर्जीव हर वस्तु का सृजन उस ब्रह्म स्रोत से हुआ है जिसमें उसके गुण का अंश है।
प्रह्लाद से जुड़ी कथा भी इस व्याख्यान को प्रमाणित करती है।उसके पिता हिरण्यकश्यप के क्रोधित विग्रह पर हर कण में भगवान के व्याप्त होने की बात को प्रमाणित करने हेतु हिरण्यकश्यप एक खम्भे को अपनी गदा से तोड़ देता है, जिससे प्रकाश के ओजस में विष्णु के चौथे अवतार पराक्रमी नृसिंह(नरसिम्हा) का अवतरण होता है। नरसिम्हा उन उत्तम परिस्थितियों में प्रकट हुए थे जो उस राजा के वरदान के अनुरूप उसे मारने की आजादी देता था। हिरण्यकशिपु को मनुष्य, देवता या जानवर द्वारा नहीं मारा जा सकता था, लेकिन नृसिंह आंशिक रूप से मानव और आंशिक रूप से जानवर थे। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघों पर (न धरती पर न हवा में) रख कर गोधूलि बेला (जब न दिन होता है न रात) तथा आंगन की दहलीज पर (न घर के अंदर, न बाहर) अपने पंजों (न तो सजीव और न ही निर्जीव अस्त्र) का उपयोग करते हुए असुर का पेट फाड़ कर मार डाला था।
अगर इसे कल्पना भी माने तो यह कितना सुन्दर है जिसमें दो बिंदुएं सामने आती है। पहला नृसिंह का अवतार मानव विकास के चरणों के उस कालखंड की व्याख्या करता है जिस समय पर धरती पर जानवरों और मानव रुपी जंगली जीवों का विकास आरम्भ हुआ था। दूसरा यह कथा इस बात को भी प्रमाणित करती है कि वह अदृश्य शक्ति (भगवान) हर कण में विद्यमान हैं। जो इस पुरे ब्राह्मण का संचालन उस चुम्बकीय शक्ति के रूप में करती है जो अदृश्य है। यह उसी प्रकार है जैसे हम चुम्बकीय शक्ति को भी देख नहीं सकते पर उसके आकर्षण को चुम्बक के पास महसूस कर सकते हैं। पूर्वापिनयुनिषद के एक प्रसंग में देवता ब्रह्मा जी से प्रश्न करते हैं की नृसिंह कौन है, जिसके उत्तर में ब्रह्मा जी बताते हैं की सभी प्राणियों में मानव का बौद्धिक पराक्रम प्रसिद्ध है और सिंह का शारीरिक पराक्रम। दोनों के संयोग का अर्थ है – प्रकाश और दृश्य रूप में बुद्धि और बल रूप में रक्षा के लिए तत्पर रहना। नृसिंह वास्तव में साकार रूप हो या नहीं पर प्रकाश और पराक्रम के रूप में उसका अस्तित्व कहीं भी देखा जा सकता है।
सामयिक रूप से प्रह्लाद और नृसिंह की कहानी कण कण में एक संचालन शक्ति के व्याप्त होने का प्रतीक है, वहीं काशी में मनाये जाने वाली मसान की होली सब कुछ एक में विलय हो जाने का परिचायक है। वहीं वृन्दावन की होली यह प्रमाणित करती है कि हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और आपसी लगाव व् प्रेम जीवन का संबल है।
ये सभी कहानिया मनुष्य के सामाजिक जीवन को प्रचुरता प्रदान करती है। क्योंकि मनुष्य को सामाजिक प्राणी माना जाता है और हम दूसरों पर निर्भर रहते हैं। हम एक-दूसरे पर भरोसा करके उनकी जरूरतें पूरी करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार सभी जानवरों की तुलना में मनुष्य का सामाजिक व्यवहार सबसे जटिल और आकर्षक है क्योंकि हम जैविक रूप से बातचीत करने के लिए प्रोग्राम किए गए हैं।अपने विचारों और राय को व्यक्त करने के लिए हमें अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। हमने आत्म केंद्रित जीवन जीने या कोविड काल में लोगों के मिलने से वंचित रहने से उभरी अवसाद जैसी जटिल बीमारी को अपने आस पास महसूस किया है। उसमें होली त्यौहार को मनाने का तरीका भी औषधीय रूप में प्रस्तुत होता है जो लोगों के लिए कल्याणकारी है। जिसमें हम अपने परिजनों या पड़ोसियों से मिल कर उमंग के साथ ‘फगुआ’ गाकर खुद को ऊर्जा से रिचार्ज करते हैं और ऐसे रोगों से खुद को बचाते हैं।
इन कहानियों और परम्पराओं में गहन रहस्य हैं जिसे अध्ययन कर समझने पर इसका मर्म समझ आता है। पौराणिक कथाएं और परम्पराएं जिसने भी रची हो उसकी कल्पना शक्ति और बौद्धिक क्षमता के वृहद स्वरूप को दर्शाता है।