कैलेण्डर (पंचांग) – खगोलीय गणना एवं पुरातन वैज्ञानिक विस्तार का प्रमाण
बहुत सारी भ्रांतियां शुरुआती दौर से रही हैं कि जितनी भी कथाएं या प्रथाएं हैं वह काल्पनिक हैं या वास्तविक ! उसका कोई अस्तित्व या वैज्ञानिक आधार है या नहीं ? इस परिपेक्ष्य में एक प्रसंग है कि गुरुत्वाकर्षण बल -एक आकर्षण शक्ति या बल, जो दो वस्तुओं या पिंडों को एक-दूसरे की ओर आकर्षित करवाता है, जिसके चलते पृथ्वी भी पेड़ से टूटे फल या किसी अन्य वस्तु को अपनी केंद्र की ओर आकर्षित करती है। जिसकी खोज वास्तव में 628 ईसा पूर्व भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिष ब्रह्मगुप्त ने किया था। बाद में सर आइज़क न्यूटन ने 17वीं शताब्दी में व्याख्या किया जो प्रसिद्ध हुआ। पर यह विचारणीय है कि क्या 1687 से पूर्व गुरुत्वाकर्षण बल काम नहीं करता था या अभी भी कई लोग इस बारे में नहीं जानते तो क्या उनके लिए यह काम नहीं करेगा! उसी प्रकार अगर किसी पुरातन विज्ञान या रहस्य को हम नहीं जानते तो ये अतिशयोक्ति है ऐसा कहना कि किसी प्रथा का कोई अस्तित्व नहीं है या कोई कारण नहीं है।
भारतीय संस्कृति में विभिन्न गणना पूर्णत: भौगोलिक और ज्यामितीय संरचना पर आधारित है। अभी 9 अप्रैल को, नव वर्ष प्रतिपदा भारतीय संस्कृति में हिन्दू नव वर्ष के अनुरूप विक्रमी संवत 2081 के अनुसार मनाया जाएगा । विक्रमी संवत्, हिन्दू पंचांग के अनुसार समय गणना करने का पारंपरिक तरीका है। संवत का अर्थ युग, अवधि या समय होता है और पंचांग, हिन्दू समुदाय का ज्ञात कैलेंडर है, जो समय मापन की पारंपरिक इकाइयों का पालन करता है और त्योहारों, ग्रहों की स्थिति, पृथ्वी और चंद्र की धुरी तथा उनकी गणनाओं जैसी महत्वपूर्ण तिथियों को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। पारिवारिक समारोहों, शुभकामनाओं के आदान-प्रदान और आने वाले वर्ष में सौभाग्य सुनिश्चित करने के लिए अनुष्ठानों में भाग लेने के साथ मनाया जाने वाला यह पारंपरिक नव वर्ष या विक्रमी संवत् : भारत, नेपाल और अन्य हिन्दू क्षेत्रों के कई त्योहारों में से एक है। यह प्रत्येक वर्ष मार्च-अप्रैल में पड़ता है तथा असम, बंगाल, बर्मा, कंबोडिया, केरल, कश्मीर, मणिपुर, उड़ीसा, पंजाब, श्रीलंका, तमिलनाडु एवं थाईलैंड में मनाए जाने वाले पारंपरिक नव वर्ष के साथ मेल खाता है। नेपाल के सरकारी संवत् के रूप में भी विक्रम संवत् ही प्रयोग आता है। इसके अलावा विक्रमी संवत् कैलेंडर को उत्तर और पूर्वी भारत में, तथा गुजरात में हिंदुओं के बीच भी मान्यता प्राप्त है। दुर्भाग्य से यह विभिन्न राज्यों में छोटे समुदायों के बीच मनाया जाता है, लेकिन इसे राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक त्योहार या नव वर्ष के रूप में मान्यता नहीं मिली है।
वैज्ञानिक तरीके से पूर्ण भारतीय कैलेंडर में पाँच अंग या सूचना के भाग होते हैं: चंद्र दिवस (तिथि), सौर दिवस (वार), नक्षत्र (नक्षत्र), ग्रह योग (योग) और खगोलीय अवधि (करण)। यह पांचों संरचना संयुक्त रूप से पंच अंग अर्थात पंचांग नाम देती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार तिथि क्रमशः प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया होती है। जैसे ग्रेगोरियन अंग्रेजी कैलेंडर 1 ईस्वी में शुरू हुआ था, जिसका व्यापक रूप से जनवरी, फरवरी और इसी तरह के महीनों की गणना के साथ वर्तमान दिनों में उपयोग किया जाता है। विक्रमी संवत 57-58 ईसा पूर्व में शुरू हुआ तथा चैत्र, वैशाख आदि जैसे महीनों की गणना की गई। ‘विक्रम संवत’ का नाम कालिदास के समय के राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है। राजा विक्रमादित्य के दरबार में विभिन्न कार्यों हेतु नवरत्न थे – धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि। उसी काल खंड में इसकी रूपरेखा तैयार की गयी थी एवं इसी के आधार पर पूर्णिमा, अमावस्या , ग्रहण या अन्य गणना बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण के आज भी की जाती है। वर्ष में बारह महीने और सप्ताह में सात दिन का प्रचलन विक्रम संवत की देन है।
आप कैलेंडर, समय, क्षण, तिथि, सप्ताह, महीना या अन्य गणना को अस्वीकार कर सकते हैं पर आप अपने चारों ओर सूर्य, तारों का समूह तथा चंद्रमा की भौगोलिक संरचना और गति को अस्वीकार नहीं कर सकते। तारों द्वारा निर्मित विभिन्न संरचना को नक्षत्र कहा जाता है। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार 27 परिभाषित नक्षत्र हैं तथा महीने का नाम संबंधित नक्षत्रों में पूर्णिमा की उपस्थिति के आधार पर रखा गया है। विक्रमी संवत् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ होता है। चैत्र माह जब चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में होता है, वैशाख -विशाखा में, ज्येष्ठ – ज्येष्ठा में, आषाढ़ -पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा में, श्रावण -श्रवण में,भाद्रपद – पूर्वाभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद में, आश्विन- अश्विनी में, कार्तिक- कृत्तिका में, मार्गशीर्ष -मृगशिरा में, पौष पुष्य में, माघ मघा में तथा फाल्गुन पूर्णिमा को चन्द्रमा के पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में होने के समय होता है।

महीने की गणना सूर्य और चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। जिसके भाग में 2.25 नक्षत्र से एक राशि बनता है तथा बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं । जब सूर्य राशि चक्र में प्रवेश करता है तो महीना बदल जाता है। महीने की सटीक लंबाई सूर्य द्वारा एक पूर्ण राशि चक्र में घूमने में लगने वाला समय है जो लगभग 29 से 32 दिनों के बीच होता है। इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर में, इसे प्रत्येक वैकल्पिक महीने में 30 और 31 माना जाता है। लेकिन पंचांग के अनुसार, सटीक समय की गणना 29 दिनों और कुछ घंटों से लेकर 32 दिनों तक की जाती है तथा एक पूर्ण राशि चक्र में सूर्य की गति को पूरा करने में लगने वाला विशिष्ट समय होता है। दिनांक को तिथि, माह को मास और वर्ष को अयन कहा जाता है। तिथि को चंद्रमा और सूर्य के बीच 12 डिग्री तक बढ़ने वाले अनुदैर्ध्य कोण के आधार पर परिभाषित किया जाता है। एक तिथि 19 घंटे से लेकर 26 घंटे तक भिन्न होती है जो सूर्य और चंद्रमा के भौगोलिक झुकाव पर निर्भर करती है। पंद्रह तिथियां मिलकर एक पक्ष बनाती हैं, दो पक्ष मिलकर एक मास (महीना) बनाते हैं, दो मास (महीना) मिलकर एक ऋतु (ऋतु) बनाते हैं और तीन ऋतु मिलकर एक अयन बनाते हैं और दो अयन मिलकर एक वर्ष बनाते हैं। पक्ष दो होते हैं, एक को शुक्ल पक्ष (उज्ज्वल दिन) जो चन्द्रमा के अमावस्या से पूर्ण चंद्र होने तक को कहा जाता है वही दूसरा कृष्ण पक्ष जो पूर्ण चंद्र (पूर्णिमा) से अमावस्या -अँधेरे दिन तक को कहते हैं।
विक्रमी संवत के अनुसार प्रत्येक वर्ष 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट और कुछ सेकंड का होता है। इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर (ग्रेगोरियन मंथ्स) के अनुसार प्रत्येक चौथे वर्ष का अंतर बनाए रखने के लिए 366 दिनों का लीप वर्ष माना जाता है।महीनों की तरह, पंचांग कैलेंडर में दिन के दो माप होते हैं, एक चंद्र गति पर आधारित चंद्र दिवस और दूसरा सौर पर- सौर दिवस या नागरिक दिवस(दिन), जो एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। दूसरा चंद्र दिवस या तिथि दोपहर के मध्य में शुरू हो सकती है और अगले दोपहर को समाप्त हो सकती है। ये दोनों दिवस सीधे तौर पर गणितीय माप से मेल नहीं खाते हैं, पर पंचांग सौर और चंद्र महीनों के समान पद्धति का उपयोग करके दिवस और तिथि में बेमेल को समायोजित करते हैं। तिथि अनुष्ठानों और त्योहारों के समय का आधार बनती है, वहीं दिवस की प्रणाली सामान्य आबादी के लिए सुविधाजनक और रोजमर्रा के उपयोग का आधार बनती है।
यह तो था पंचांग का जटिल व्याख्यान पर इसका प्रयोग अन्य कार्यों जैसे ज्योतिष शास्त्र में भी किया जाता है। पंचांग के वास्तविक निर्माण में विस्तृत गणितीय कार्य शामिल होता है जिसमें उच्च स्तर की ज्यामिति और खगोलीय घटनाओं की समझ उपयोग में ली जाती है। जैसे कि खगोलीय पिंडों की नक्षत्र गति इत्यादि । हालाँकि, व्यवहार में तालिका बनाने का कार्य प्राचीन वैदिक ऋषियों और विद्वानों द्वारा प्रतिपादित शॉर्ट-कट फॉर्मूलेशन के आधार पर किया जाता है। एक विशिष्ट पंचांग वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए, एक निश्चित स्थान (देशांतर, अक्षांश) और दिन के समय (24-घंटे के प्रारूप IST) में सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की स्थिति की सारणी बता सकता है। उपयोगकर्ता इस निश्चित स्थान और समय से अपने सापेक्ष अंतर का उपयोग करके शेष डेटा की गणना करते हैं। पंचांग का मूल उद्देश्य विभिन्न हिन्दू त्योहारों और शुभ समय (मुहूर्त) की जांच करना है। यहां तक कि जन्म की तिथि और समय भी जीवित प्राणियों व् मनुष्यों के गुण, विशेषताओं और भविष्य को दर्शाने में मदद करता है। यह माना जाता है कि समय, तिथि, जन्म वर्ष और जन्म का स्थान किसी भी जीवित व्यक्ति की संपूर्ण जीवन संरचना का मानचित्रण करने में मदद करता है जिसे कुंडली कहा जाता है। इसके संदर्भ में व्यक्ति की विशेषताओं तथा जीवन के अच्छे और बुरे चरणों को निर्धारित किया जा सकता है और ये वास्तव में सिद्ध हैं।
वर्तमान युग में, जन्म कुंडली का उपयोग विवाह के उद्देश्य के लिए विशेषता तथा गुण मिलान के लिए किया जाता है। पंचांग या विक्रम संवत पूर्णतः वैज्ञानिक है और यह जीवन के अच्छे और बुरे चरणों का पता लगाने का एक दिव्य उपकरण भी है जो हिन्दूओं के बीच बड़ी मात्रा में चलन में भी है।